नारी ब्यूटी /नरेश सिहँ ,कुरुक्षेत्र…….साथियों आज विभिन्न जगह व विभिन्न शहरों मे अम्बेडकर जयन्ती बनाई गई । बाबासाहेब को याद किया गया बड़ा ही अच्छा व सराहनीय कदम, लेकिन साथ -२अनेक प्रश्न भी खड़े हो गयें कि क्या हमनें ईमानदारी व ,सच्ची निष्ठा से बाबासाहेब को याद किया ? क्या बाबासाहेब की फिलोसोफी को अपनें स्वयं के जीवन में अपनाया व अपनें घरो मे लागू किया ? उस पर सन्देश होना लाजिमी है क्योंकि दलित समाज का पढे -लिखें ज्यातर लोगों ने बाबासाहेब के साहित्य दर्शन व फिलोसोफी को जाना ही नही है और न कभी जानने कि कोशिश की और न ही जरुरत समझी? । बाबासाहेब को वह सिर्फ इसलिए याद कर रहा है क्योंकि उसने स्वयं आरक्षण का लाभ पाकर नौकरी पाई व उम्रभर उसकी आन्नद उठाया व उठा रहें है । बाबासाहेब का साहित्य दर्शन जाने बिना हम उनकें साथ कैसे इन्साफ कर सकते है , उनकें साहित्य दर्शन को बिना पढें कैसें समाज के साथ न्याय कर सकतें है ? बाबासाहेब के साहित्य दर्शन को बिना अपनें जीवन में अपनायें वह बाबासाहेब के साहित्य दर्शन को दुसरों को कैसे बता सकता है ? बाबासाहेब के बारें मे कोई व्यक्ति जब कुछ बोल रहा होता है ।सुनने वाले व्यक्ति साथ -साथ उस बोलने वाले व्यक्ति का विश्लेषण भी कर रहा होता है ।जिसके कारण सुननेवाले व्यक्ति को बोलनेवाले व्यक्ति की बात पर जरा सा भी विशवास नही होता और परिणाम यह होता है कि सुननेवाला आम व्यक्ति बाबासाहेब , उनकें जीवन व साहित्य पर जरा सा भी प्रभावित नही होता और जिसके कारण वह अपनें स्वयं के जीवन मे उस पर जरा सा भी अम्ल मे नही करता ।
बीता हुआ कल 14अप्रैल बाबासाहेब जयन्ती पर भी यह सब देखनें मे आया कि मंचासीन ज्यादातर जगह पर वही व्यक्ति थे जो कि बाबासाहेब के साहित्य दर्शन से कोसों दूर है । बाबासाहेब पर ऐसें ही लोग बोलते सुनें गये जिन्होंने कि अपनें जीवन में एक भी पुस्तक नही पढी़ जबकि बाबासाहेब इतना लिखकर गये कि अगर दलित समाज उनकें साहित्य को पढकर उसे अपनें नीजी जीवन में अपना ले तो निसन्देह बाबासाहेब भी खुश होगें ।और उस व्यक्ति का नीजी जीवन व परिवार का भी खुश होगा और दलित समाज भी दलित न रहकर विकसित समाज कहलायेगा
लेकिन दुर्भाग्य से दलित समाज के अनेकों व्यक्ति समाज की ठेकेदारी करते नजर आयें । और ठेकेदारी भी वही लोग कर रहे थें ।जिन्होंने कि अपनें नीजी जीवन में भी ईमानदारी नही बरती जिसके कारण ऐसे लोग न ही स्वयं के बच्चों के सामने , और न ही समाज के युवाओं के सामने आदर्श प्रस्तुत कर सकें ।जो व्यक्ति अपनें स्वयं के बच्चों के भविष्य को नही बना सके ,वह समाज के बच्चों के भविष्य को संवारने को निकल पडे। अब समाज के लोग उस व्यक्ति पर प्रश्न उठा रहा है कि जो व्यक्ति अधिकारी ,कर्मचारी व साधन सम्पन्न होने के बावजूद अपने स्वयं के बच्चों का भविष्य नही सुधार पाया वह हमारा क्या भला करेगा ? और यहाँ पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जो व्यक्ति स्वयं के परिवार की जिम्मेदारी को नही उठा पाया हो ,वह समाज जिम्मेदारी कैसे उठा सकता है ? और वाल्मीकि समाज की जिम्मेदारी उठाने का नाटक करने वाले ऐसे लोगों की लंबी कतार है ।तथा वाल्मीकि समाजीं व जाति की विडंबना भी यही रही है कि ज्यादातर समाज के ठेकेदार स्वयं का घर सम्भाल नही पातें लेकिन समाजवाद की जिम्मेदारी लेने निकल पड़ते है । यह कोई किसी व्यक्ति विशेष की बात नही है । वाल्मीकि समाज के ज्यादातर आफिसर से लेकर आम नेताओं तक का यही सिलसिला हैं । वाल्मीकि समाज के आफिसर जब तक आफिसर रहतें हैं तब तक उन्हे समाज से बदबू आती हैं । लेकिन जैसे ही रिटायर्ड होनें वाले होतें हैं या हो जातें है तब उन्हे समाज याद आ जाता है ,वही समाज जिससे उसे बदबू आती थी । लेकिन कहतें हैं ना कि वक्त बड़ा बलवान होता है ,जो बड़ों -२को झुका देता है । वाल्मीकि आफिसर की तो औकात ही क्या ?
अब समाज के व्यक्ति अब इस आफिसर शक जाहिर कर रहा है और उसका विश्लेषण कर रहा है कि आज तक इस आफिसर ने समाज के लिए कुछ नही किया ।अचानक इस आफिसर को रिटायर्ड होनें पर क्यों इसके सिर पर समाज सुधार का भूत सवार हो गया आ । इससे पहलें तो इसको कभी कही सामाजिक कार्य करते देखा नही ।उस आदमी का शक जाहिर करना लाजिमी है क्योंकि उस आफिसर ने समाज के लिए वास्तव में ही कुछ नही किया उस आम व्यक्ति को क्या पता कि उस आफिसर की भी कुछ नीजी जिम्मेदारी है जिन्हें अब वह केवल समाजवाद का चोला पहनकर ही पूरा कर सकता है ।इसलिए वह समाजवाद का चोला पहनकर घर से निकल पड़ता है और अपनें पद व रुतबा का फायदा उठाते हुए शुरु हो जाता मंचों पर मन्त्री ,विधायकों व नेताओं की नजदीकी बढाने क्योकि उसे चिन्ता है अपनें स्वयं के बच्चों को नौकरी दिलवाने की व अपनें परिवार की आय बढाने की , जिसके कारण वह अब समाजवाद की आड़ मे मन्त्री ,विधायक व छूटभैया नेताओं की भी जी-करने से फरहेज नही करता । मरता हुआ आदमी क्या नही करता ।
साथियों हरियाणा में एक दुसरा भी अधिकारियों व कर्मचारियों का एक झुंड है, जो कि हर सरकार मे वाल्मीकि जयन्ती व अम्बेडकर जयन्ती के बहाने समाज से पैसे की उगाई करते हे तथा समाजवाद के नाम पर मन्त्री व मुख्यमन्त्री तक नजदीकी बढाने का सिलसिला शुरु हो जाता है ,जैसे ही सरकारें बदलती है । नजदीकी बढाना कोई गलत बात नही है ।लेकिन समस्या तब होती जब वह आफिसरों का झुंड विधायक , मन्त्री मुख्यमंत्री के सामने समाज की समस्याओं पर बात करना व रखना भी जरुरी नही समझता ।
साथियों उपरोक्त जो शंका जाहिर कि है वह बिल्कुल भी निराधार नही है। जानिए कैसे ? भाजपा सरकार आने के बाद पहली वाल्मीकि जयन्ती कैथल में एक मन्त्री के नेतृत्व मे व आफिसरों के देख-रेख में बनाई गई दुसरी जीन्द मे बनाई गईऔर अम्बेडकर जयन्ती ।लेकिन आजतक इन आफिसरों के झुंड ने वाल्मीकि समाज की समस्याओं का ज्ञापन देना व सरकार के ध्यान में लाना जरुरी नही समझा । ये लोग समझते भी कैसे ? क्योंकि इनका उदेश्य समाज कल्याण व विकास है ही नही , इनका समाज कल्याण से दूर -२तक कोई लेना देना नही है ।
प्रोफेसर नरेश सिहँ ,कुरुक्षेत्र
